राज्य के नीति निदेशक सिद्धान्त क्या होते है?

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राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत भारतीय संविधान के भाग 4 के अनुच्छेद 36 से 51 के बीच निहित है। इसे आयरिश संविधान से लिया गया है, आयरिश संविधान ने यह स्पेनिश के संविधान से इन मूल्यों को अपनाया है। डॉ अंबेडकर ने इन्हे संविधान की “अनूठी विशेषता” कहा है। यह वह मूल सिद्धांत है जो एक राज्य को अपनी नीति या कानून बनाते समय इन सिद्धांतों ध्यान में रखकर ही बनाना चाहिए। क्या होते है नीति निदेशक सिद्धांत?जानेगे नीति निर्देशक सिद्धांत के बारे मे एवं यह राज्य के नीति निर्माण मे क्यू आवश्यक है? क्या सरकार कानूनी रूप से बाध्यकारी है इन्हे लागू करने मे ? इस विषय मे संक्षेप मे समझते है।

राज्य के नीति निदेशक सिद्धान्त का अर्थ एवं उनकी प्रकृति

डॉ अंबेडकर के अनुसार देखा जाए तो यह याज्य के  लिए “निर्देश का साधन”(instrument of Instruction)।यह सिद्धान्त एक तरह के निर्देश होते हैं जो सरकार एवं सरकार की एजेंसियों को दिए जाते हैं जिसे देश की शासन व्यवस्था में नैतिक रूप से इस्तमाल किया जाना चाहिए। राज्य का यह कर्त्तव्य है कि कानून बनाते समय यह पूर्ण रूप से लागू हो। संक्षेप में कहे तो नीति निदेशक सिद्धांत ऊन बुनियादि सिद्धांतों को सुनिश्चित करते हैं जो भारत को एक राज्य के रूप में निर्मित करता है यह उन महान उद्देश्यों को प्राप्त करने के मार्ग को प्रदर्शित करता है जो संविधान की प्रस्तावना में बताया गया है, जैसे न्याय – सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक, स्वतंत्रता-समानता और भाईचारा। 

क्या यह कानूनी रूप से बाध्य हैं?

नहीं, देखा जाए तो यह न्यायपालिका द्वारा आदेश करने के बावजूद भी लागू नहीं किए जा सकते है। न्यायपालिका  के द्वारा निर्देश दिए जाने के बाद भी, अगर राज्य चाहिए तो इन्हें लागू करें या ना करें, यह  पूर्णतः राज्य पर निर्भर करता है। संविधान निर्देशित करता है कि नीति निदेशक तत्व देश की राज्यव्यवस्था शासन के लिए मौलिक सिद्धांत हैं और यह राज्य का कर्तव्य है कि वह मूल्यों का पालन करें, लेकिन राज्य इनका पालन करने को प्रतिबध्द नहीं है जिस तरह से मौलिक अधिकार के लिए हैं। कोई व्यक्ति अपने मौलिक अधिकारों के हनन के विरुद्ध अनुच्छेद 32 और अनुच्छेद 226 के तहत न्यायपालिका जा सकता है, लेकिन नीति निर्देशक सिद्धांत को लागू करने के लिए न्यायपालिका नहीं जा सकता। क्यूकी यह राज्य के ऊपर बाध्य नहीं है जैसा की मौलिक अधिकार होते है।

नीति निदेशक सिद्धान्त का वर्गीकरण 

हलांकि संविधान में इनका कोई वर्गीकरण नहीं दिया गया है लेकिन इनमें निहित मूल्यों के अनुसर इन्हे तीन तरह से वर्गीकरण किया जाता है, समाजवादी, गांधीवादी एवं  उदारवादी-बुद्धिजीवी

  1. समाजवादी सिद्धान्त
  2. गांधीवादी सिद्धान्त
  3. उदारवादी-बुद्धिजीवी सिद्धान्त

1. समाजवादी सिद्धान्त

यह समाजवाद की विचारधारा को दर्शाता है लेकिन भारत में लोकतांत्रिक समाजवाद का पालन किया जाता है।  जिसका उद्धेश्य सामाजिक एवं आर्थिक न्याय प्रदान करना है और कल्याणकारी राज्य की ओर मार्ग प्रशस्त करना है| निम्नलिखित अनुच्छेदों मे इनका उल्लेख हैं,

अनुच्छेद 38:-न्याय-सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से व्याप्त सामाजिक व्यवस्था को सुरक्षित करके और आय, स्थिति, सुविधाओं और अवसरों में असमानताओं को कम करके लोगों के कल्याण को बढ़ावा देना

अनुच्छेद 39:- इसमे निम्नलिखित प्रावधान निहित है:

  • राज्य की नीति को आजीविका के पर्याप्त साधन सुरक्षित करने चाहिए।
  • सभी के बीच संसाधनों का समान वितरण।
  • धन और उत्पादन के साधनों के संकेन्द्रण को रोकना।
  • पुरुषों और महिलाओं के लिए समान काम के लिए समान वेतन।
  • जबरन दुर्व्यवहार के विरुद्ध श्रमिकों और बच्चों के स्वास्थ्य और शक्ति का संरक्षण।
  • बच्चों के स्वस्थ विकास का अवसर (42वाँ संशोधन द्वारा जोड़ा गया)

अनुच्छेद 39(A):- समान न्याय को बढ़ावा देने और गरीबों को मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करने के लिए (42वां संशोधन)।

अनुच्छेद 41:-बेरोजगारी, बुढ़ापा, बीमारी की स्थिति में काम, शिक्षा और सार्वजनिक सहायता का अधिकार।

अनुच्छेद 42:- काम की उचित एवं मानवीय स्थितियों एवं मातृत्व राहत(MATERNITY RELIEF) का प्रावधान

अनुच्छेद 43:- सभी श्रमिकों के लिए जीवनयापन योग्य वेतन, सभ्य जीवन स्तर और सामाजिक और सांस्कृतिक अवसर सुरक्षित करना।

अनुच्छेद 43(A):-  उद्योगों के प्रबंधन में श्रमिकों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाएं (42वां संशोधन)।

अनुच्छेद 47:-लोगों के पोषण स्तर और जीवन स्तर को ऊपर उठाना और सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार करना।

2. गांधीवादी सिद्धान्त

ये गांधीवादी विचारधारा को दर्शता है ये संयुक्त राष्ट्र के कार्यक्रम को दर्शता है जो महात्मा गांधी द्वार राष्ट्रीय आंदोलन के दौरन किये गये थे। निम्नलिखित अनुच्छेदों मे इनका उल्लेख हैं:- 

अनुच्छेद 40:- ग्राम पंचायतों का आयोजन करना (यह जमीनी स्तर पर लोकतान्त्रिक संरचना को दर्शाता है)।

अनुच्छेद 43:-ग्रामीण क्षेत्रों में व्यक्तिगत अथवा समितियां के आधार पर कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देना।

अनुच्छेद 43(B):-सहकारी समितियों के स्वैच्छिक गठन, स्वायत्त कामकाज, लोकतांत्रिक नियंत्रण और पेशेवर प्रबंधन को बढ़ावा देना (97वां संशोधन 2011)।

अनुच्छेद 46:- अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और समाज के अन्य कमजोर वर्गों के शैक्षिक और आर्थिक हितों को बढ़ावा देना एवं उन्हें सामाजिक अन्याय और शोषण से बचाना। 

अनुच्छेद 47:-नशीले पेय और नशीली दवाओं के सेवन पर रोक लगाएं।

अनुच्छेद 48:- गायों की हत्या पर रोक लगाएं और उनकी नस्लों में सुधार करें। 

3. उदारवादी-बुद्धिजीवी सिद्धान्त

अनुच्छेद 44:- राज्य देश मे सामान्य नागरिक संहिता लागू करनेका प्रयत्न करेगा। 

अनुच्छेद 45:- 6 वर्ष की आयु पूरी करने तक सभी बच्चों को प्रारंभिक बचपन की देखभाल और शिक्षा प्रदान करना (86वाँ संशोधन 2002)।

अनुच्छेद 48:- कृषि एवं पशुपालन को आधुनिक एवं वैज्ञानिक आधार पर व्यवस्थित करना।

अनुच्छेद 48(A):-  पर्यावरण की रक्षा और सुधार करना तथा वनों और वन्य जीवन की सुरक्षा करना (42वां संशोधन 1976)।

अनुच्छेद 49 :- उन स्मारकों या ऐतिहासिक हितों की रक्षा करें जिन्हें राष्ट्रीय महत्व का घोषित किया गया है। 

अनुच्छेद 50:- राज्य की सार्वजनिक सेवाओं में न्यायपालिका को कार्यपालिका से अलग करने के लिए राज्य उचित प्रयत्न करेगा।

अनुच्छेद 51:- अंतर्राष्ट्रीय शांति को बढ़ावा देना, राष्ट्रों के बीच सम्मानजनक संबंध बनाए रखना, अंतर्राष्ट्रीय कानूनों और संधि दायित्वों के प्रति सम्मान को बढ़ावा देना और शांतिपूर्ण समाधानों को प्रोत्साहित करना।

कुछ अन्य नीति निदेशक सिद्धान्त जो संविधान संशोधनों द्वारा जोड़े गए|

  • 42 वा संविधानिक संशोधन: जिसके तहत 4 नए सिद्धांतो को जोड़े गए:- 
  1. अनुच्छेद 39:- इसमे निम्नलिखित प्रावधान निहित है:
  • राज्य की नीति को आजीविका के पर्याप्त साधन सुरक्षित करने चाहिए।
  • सभी के बीच संसाधनों का समान वितरण।
  • धन और उत्पादन के साधनों के संकेन्द्रण को रोकना।
  • पुरुषों और महिलाओं के लिए समान काम के लिए समान वेतन।
  • जबरन दुर्व्यवहार के विरुद्ध श्रमिकों और बच्चों के स्वास्थ्य और शक्ति का संरक्षण।
  • बच्चों के स्वस्थ विकास का अवसर (42वाँ संशोधन द्वारा जोड़ा गया)
  1. अनुच्छेद 39(A):- समान न्याय को बढ़ावा देने और गरीबों को मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करने के लिए (42वां संशोधन)।
  2. अनुच्छेद 43(A):-  उद्योगों के प्रबंधन में श्रमिकों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाएं (42वां संशोधन)।
  3. अनुच्छेद 48(A):-  पर्यावरण की रक्षा और सुधार करना तथा वनों और वन्य जीवन की सुरक्षा करना (42वां संशोधन 1976)।
  • 44 वा संविधान संशोधन

एक नया प्रावधान जोड़ा गया अनुच्छेद 38:-”न्याय-सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से व्याप्त सामाजिक व्यवस्था को सुरक्षित करके और आय, स्थिति, सुविधाओं और अवसरों में असमानताओं को कम करके लोगों के कल्याण को बढ़ावा देना”

  • 86 वा संविधान संशोधन

अनुच्छेद 45 के तत्वो को संशोधित किया एवं प्राथमिक शिक्षा को अनुच्छेद 21(A) के तहत मौलिक अधिकारो मे जोड़ा गया। 

अनुच्छेद 21(A):- राज्य सभी बच्चों को 6 वर्ष की आयु पूरी करने तक प्रारंभिक बचपन देखभाल और शिक्षा प्रदान करेगा

  • 97 वा संविधान संशोधन

इस स्संविधानिक संशोधन के तहत अनुच्छेद 43(B) को जोड़ा गया

भाग 4 के प्रथक अन्य सिद्धान्त 

  • भाग 16 – अनुच्छेद 335:- सेवाओं और पदों पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के दावे
  • भाग 17 – अनुच्छेद 350(A):- प्रत्येक राज्य और राज्य के भीतर प्रत्येक स्थानीय प्राधिकारी का यह प्रयास होगा कि भाषाई अल्पसंख्यक समूहों से संबंधित बच्चों को शिक्षा के प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा के लिए पर्याप्त सुविधाएं प्रदान की जाएं; और राष्ट्रपति किसी भी राज्य को ऐसे निर्देश जारी कर सकता है जैसा वह ऐसी सुविधाओं के प्रावधान को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक या उचित समझता है।(यह प्रावधान भारत के संविधान, 1950 का हिस्सा नहीं था। इसे संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 द्वारा डाला गया था।)
  • भाग 17 – अनुच्छेद 351:- संघ का यह कर्तव्य होगा कि वह हिंदी भाषा के प्रसार को बढ़ावा दे, उसे विकसित करे ताकि वह भारत की समग्र संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके और बिना किसी हस्तक्षेप के आत्मसात करके इसके संवर्धन को सुनिश्चित कर सके। इसकी प्रतिभा, हिंदुस्तानी और आठवीं अनुसूची में निर्दिष्ट भारत की अन्य भाषाओं में उपयोग किए जाने वाले रूप, शैली और अभिव्यक्तियाँ, और जहाँ भी आवश्यक या वांछनीय हो, इसकी शब्दावली के लिए, मुख्य रूप से संस्कृत पर और गौण रूप से अन्य भाषाओं पर चित्रण करके।

नीति निदेशक तत्वो को संविधान मे मंजूरी देने के पीछे क्या कारण है?

जब संविधान सभा की प्रारूपण समिति द्वारा संविधान का प्रारूप बनाया जा रहा था तब प्रारूप समिति के संवैधानिक सलाहकार सर बीएन राव द्वारा सुझाव दिया गया कि व्यक्तिगत अधिकारों को दो श्रेणीयों में बंटा जा सकता है न्यायसंगत और गैर-न्यायसंगत जिसे संविधान सभा द्वारा सहमति प्रदान की गई। इस प्रकार मौलिक अधिकारों (भाग 3) को न्यायोचित अधिकार की सुची में जोड़ा गया और नीति निदेशक तत्वों (भाग 4) को गैर-न्यायसंगत अधिकारों की सुचि में जोड़ा गया। नीति निदेशक सिद्धांत कानूनी रूप से बाध्य न होने के बाद भी  संविधान निर्माताओं ने यह सुनिश्चित किया कि राज्य नीतियाँ एवं  कानून बनाने में इनका पालन करें। संविधान निर्माताओं ने भाग 4 को गैर-न्यायसंगत श्रेणि में बनाया रखने के पीछे महत्वपूर्ण कारण  रहे थे, जैसे जब भारत अंग्रेज़ो के शासन  से मुक्त हुआ था उस समय  देश के पास पर्याप्त वित्तीय सहायता नहीं थी ओर उस समय देश में जो पिछड़ापन था वह राष्ट्र के निर्माण में इन्हे लागू करने के रास्ते में आ रहा था।

हालांकि राज्य के नीति निदेशक तत्व कानोनी रूप से बाध्य नहीं है, पर यह वे सिधान्त है जो एक आदर्श राज्य के प्रतिबिंब को दर्शाता है। भारत मे इन सिद्धांतों को जमीनी स्टार पर लागो करने के लिए प्रयत्न किए गए है जैसा की हाल ही मे केंद्र सरकार द्वारा सामान्य नागरिक संहिता का प्रारूप तैयार करना, अनुच्छेद 21 (A) को मौलिक अधिकारो की सूची मे रखना। वर्तमान की स्थिति को ध्यान मे रख कर भारत को भाग 4 के अन्य हिस्सो को भी लागू करने की ओर प्रयास करना चाहिए। 

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