संविधान देश का एक मौलिक दस्तावेज़ है। यह दस्तावेज़ देश के तमाम क़ानूनों को शक्ति प्रदान करता है। यह वह दस्तावेज़ है जो राज्य के तीन अंगों—कार्यपालिका, विधायिका, और न्यायपालिका—की स्थिति और शक्तियों को परिभाषित करता है। भारतीय संविधान को “लिविंग डॉक्यूमेंट” अर्थात एक जीता-जागता दस्तावेज़ कहा गया है।
यदि संविधान को बदलने या इसमें लिखे प्रावधानों में संशोधन करने की आवश्यकता होती है, तो भारत की संसद इसे कैसे बदलती है या संशोधन कैसे करती है? क्या संविधान को बदलना सही है या गलत? संविधान के किन प्रावधानों को बदला नहीं जा सकता या जिन्हें बदलना नहीं चाहिए?
इस विषय को संक्षेप में समझेंगे और जानेंगे कि अब तक भारत के संविधान में कितनी बार संशोधन हो चुका है।
क्यों होती है संविधान में संशोधन की आवश्यकता?
संविधान किसी भी देश को सुचारु रूप से चलाने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। संविधान मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं—लिखित और अलिखित। भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों में लिखित संविधान की व्यवस्था है, जबकि ब्रिटेन जैसे देशों में अलिखित संविधान का प्रचलन है।
जब भी किसी देश को समय के साथ प्रगति करनी होती है या बदलती परिस्थितियों के अनुसार खुद को ढालना होता है, तो संविधान में संशोधन करना आवश्यक हो जाता है। यदि समय पर संविधान में संशोधन न किया जाए या उसमें लिखे गए प्रावधानों को आवश्यकतानुसार बदला न जाए, तो देश के विकास में बाधा आ सकती है। वहीं, अगर संविधान को बार-बार बदला जाए, तो यह देश की स्थिरता को प्रभावित कर सकता है और उसे सही तरीके से चलाना कठिन हो सकता है।
संविधान में संशोधन की आवश्यकता इस पर निर्भर करती है कि उसे किस उद्देश्य से बदला जा रहा है। जैसा कि संविधान निर्माता डॉक्टर बाबासाहेब अंबेडकर ने कहा था, “संविधान चाहे कितना भी अच्छा क्यों न हो, अंततः वह बुरा साबित होगा यदि उसे उपयोग में लाने वाले लोग बुरे होंगे। और संविधान चाहे कितना भी बुरा क्यों न हो, अंततः वह अच्छा साबित होगा यदि उसे उपयोग में लाने वाले लोग अच्छे होंगे।”
देश की आर्थिक, न्यायिक, और सामाजिक व्यवस्थाएं संविधान पर निर्भर करती हैं। यदि इसे सही तरीके और उचित मुद्दों पर संशोधित न किया जाए, तो यह किसी भी देश के लिए गंभीर समस्याएं उत्पन्न कर सकता है।
भारतीय संविधान मे संशोधन की प्रक्रिया
भारतीय संविधान में संशोधन की प्रक्रिया अन्य देशों की तुलना में अलग और विशिष्ट है। उदाहरण के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका का संविधान काफी हद तक कठोर है और इसे संशोधित करना कठिन होता है। दूसरी ओर, ब्रिटेन का संविधान लचीला है और इसे आसानी से संशोधित किया जा सकता है।
भारतीय संविधान की दृष्टि से देखा जाए तो यह न तो पूरी तरह कठोर है और न ही पूरी तरह लचीला, बल्कि दोनों का संतुलित रूप है। भारतीय संविधान के भाग 20 में अनुच्छेद 368 में यह प्रावधान किया गया है कि भारत की संसद को संविधान और उसकी प्रक्रिया को संशोधित करने का अधिकार है।
अनुच्छेद 368 यह कहता है कि, “इस संविधान में किसी भी प्रावधान के होते हुए भी, संसद अपनी विधायी शक्ति का प्रयोग करते हुए, इस संविधान के किसी भी उपबंध का परिवर्धन, परिवर्तन या निरसन, अनुच्छेद में वर्णित प्रक्रिया का पालन करते हुए कर सकेगी।”
यह ध्यान रखना आवश्यक है कि संविधान में संशोधन का अधिकार केवल भारत की संसद के पास है। किसी राज्य की विधानसभा या विधान परिषद के पास यह अधिकार नहीं होता है।
अनुच्छेद 368 मे दी गयी प्रक्रिया के अनुसार संविधान का संशोधन:-
- संविधान में संशोधन की प्रक्रिया केवल संसद के किसी भी सदन में एक विधेयक पेश करने से शुरू होती है। यानी संसद में सबसे पहले एक विधेयक पेश किया जाएगा, यह विधेयक लोकसभा या राज्यसभा में ही पेश किया जाएगा, न कि किसी राज्य की विधायिका में।
- यह विधेयक संसद के किसी निजी सदस्य या किसी मंत्री द्वारा पेश किया जा सकता है। इस विधेयक को पेश करने के लिए राष्ट्रपति की पूर्व सहमति की आवश्यकता नहीं होती है।
- विधेयक को प्रत्येक सदन में विशेष बहुमत से पारित किया जाना चाहिए, यानी सदन की कुल सदस्यता का बहुमत और सदन में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से पारित किया जाना चाहिए।
- प्रत्येक सदन में विधेयक पारित होना चाहिए, यानी प्रत्येक सदन द्वारा पारित होना चाहिए। यदि दोनों सदनों के बीच कोई असहमति उत्पन्न होती है, और दोनों सदनों को विधेयक पर विचार-विमर्श करना होता है, तो दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाने का कोई प्रावधान संविधान में नहीं है।
- यदि विधेयक में कुछ ऐसे तत्व शामिल हैं जो संविधान में मौजूद संघीय प्रावधानों को संशोधित करते हैं, तो इस परिस्थिति में विधेयक को आधे राज्यों की विधानसभाओं द्वारा साधारण बहुमत से पारित किया जाना चाहिए।
- संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित होने और आधे राज्यों की विधानसभाओं द्वारा अनुमोदित होने के बाद, विधेयक को राष्ट्रपति के पास प्रस्तुत किया जाता है ताकि राष्ट्रपति उस पर अपनी सहमति प्रदान कर सकें।
- जब कोई विधेयक संविधान संशोधन के लिए राष्ट्रपति के सम्मुख प्रस्तुत किया जाता है, तो राष्ट्रपति के लिए यह अनिवार्य हो जाता है कि वह अपनी सहमति दे। राष्ट्रपति न तो विधेयक पर अपनी सहमति रोक सकते हैं और न ही संसद को पुनर्विचार के लिए विधेयक लौटा सकते हैं।
- राष्ट्रपति की सहमति के बाद, विधेयक एक अधिनियम (यानी, एक संवैधानिक संशोधन अधिनियम) बन जाता है और संविधान संशोधित हो जाता है।
संविधान संशोधन के प्रकार:
संविधान को संशोधित करने की प्रक्रिया अनुच्छेद 368 में प्रस्तुत की गई है, जिसके अनुसार संविधान एवं इसके प्रावधानों को तीन तरीकों से संशोधित किया जा सकता है:
1. साधारण बहुमत द्वारा संशोधन:
साधारण बहुमत का अर्थ है सदन में मौजूद और मतदान कर रहे सदस्यों का सामान्य बहुमत। संविधान के निम्नलिखित प्रावधान भी इस श्रेणी में आते हैं: जैसे संविधान की दूसरी अनुसूची, अनुच्छेद 100, अनुच्छेद 105, अनुच्छेद 111, अनुच्छेद 124, अनुच्छेद 81, अनुच्छेद 135, अनुच्छेद 137 आदि।
2. विशेष बहुमत द्वारा संशोधन:
विशेष बहुमत में प्रत्येक सदन की कुल संख्या के दो तिहाई सदस्य उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों का होना आवश्यक है। संवैधानिक संशोधन विधेयक को पारित करने के लिए विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है।
3. विशेष बहुमत एवं आधे राज्यों की विधायिकाओं द्वारा साधारण बहुमत से संशोधन:
संसद में प्रत्येक सदन द्वारा विशेष बहुमत और आधे राज्यों की विधायिकाओं द्वारा साधारण बहुमत से संशोधन किया जाता है। यह विशेष रूप से संघीय ढांचे के नियमों या प्रावधानों में बदलाव करने के लिए किया जाता है।
क्या होता है संविधान का मूलभूत ढांचा। BASIC STRUCTURE OF THE CONSTITUTION
यदि किसी संविधान को पूरी तरह से बदल दिया जाए तो वह उस देश के लिए बहुत नकारात्मक साबित हो सकता है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने एक अनोखा रास्ता निकाला जिसे “संविधान का आधारभूत ढांचा” कहते हैं। यह उन सभी मूल्यों से बना है जो संविधान को बनाए रखने में अत्यंत आवश्यक साबित होते हैं। यह सिद्धांत सर्वोच्च न्यायालय ने केसवानंद भारती केस में प्रस्तुत किया था। संक्षेप में कहा जाए तो सुप्रीम कोर्ट ने संसद को संविधान को पूरी तरह से संशोधित करने की असीमित शक्तियों पर रोक लगा दी है। न्यायालय ने कहा कि संसद संविधान में संशोधन कर सकती है, लेकिन वह उन मूल्यों को संशोधित नहीं कर सकती जो संविधान को जीवित रखने में मदद करते हैं। ये मूल्य हैं:
- राज्य का संघीय ढांचा
- संविधान की सर्वोच्चता
- भारत की संप्रभुता, लोकतांत्रिक और गणतांत्रिक प्रकृति
- संविधान का धर्मनिरपेक्ष चरित्र
- राज्य के तीन अंगों (विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका) के बीच शक्तियों का पृथक्करण
- संविधान का संघीय चरित्र
- राष्ट्र की एकता और अखंडता
- कानून का शासन
- मौलिक अधिकारों और निदेशक सिद्धांतों के बीच सामंजस्य और संतुलन
- समानता का सिद्धांत
- स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव
- न्यायपालिका की स्वतंत्रता
- अनुच्छेद 32, 136, 141 और 142 के तहत सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियाँ
- अनुच्छेद 226 और 227 के तहत उच्च न्यायालयों की शक्तियाँ
कुछ महत्वपूर्ण संवैधानिक संशोधन
भारत के संविधान को लागू हुए 70 से अधिक वर्ष हो गए हैं, जिनमें 100 से अधिक संविधान संशोधन किए गए हैं। कुछ महत्वपूर्ण संविधान संशोधन:
- 11वां संविधान संशोधन, 1961
- 17वां संविधान संशोधन, 1964
- 24वां संविधान संशोधन, 1971
- 42वां संविधान संशोधन
- 44वां संविधान संशोधन
- 78वां संविधान संशोधन
- 81वां संविधान संशोधन
- 101वां संविधान संशोधन