जिस तरह से भारत में चुनाव होता है, उस तरह से किसी और देश में चुनाव करवा पाना बहुत मुश्किल है। भारत एक ऐसा देश है जो इतनी बड़ी जनसंख्या में सफल, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव आयोजित करता आ रहा है। भारत में चुनाव केवल एक नागरिक के कर्तव्यों या अधिकारों के रूप में ही नहीं देखा जाता, बल्कि इसे “लोकतंत्र का पर्व” के रूप में भी मनाया जाता है।
मतदाताओं के लिए कई सुविधाएं उपलब्ध कराई गई हैं, जैसे फोटो पहचान पत्र, मतदाता पहचान पत्र (वोटर कार्ड) और अन्य संसाधन। भारत का चुनाव आयोग एक बहुत बड़ी और सशक्त संस्था है। चुनाव की पूरी तैयारी और देखरेख चुनाव आयोग के हाथों में होती है, जिसे वह अत्यंत कुशलता और सफलता के साथ अंजाम देता आ रहा है।
भारत का चुनाव आयोग जिस तरह से चुनाव करवाता है, उसने विश्व स्तर पर अपनी पहचान बनाई है। इस लेख में हम भारत के चुनाव प्रक्रिया को विस्तार से समझेंगे और जानेंगे कि मतदाताओं को कौन-कौन से अधिकार और सुविधाएं उपलब्ध हैं। इसके अलावा, चुनाव को निष्पक्ष रूप से संपन्न कराने में आने वाली चुनौतियां और उनके समाधान पर भी चर्चा करेंगे।
महिलाओं की चुनावी भागीदारी, उनकी स्थिति और बाकी अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं पर भी विस्तार से विचार किया जाएगा।
भारत मे चुनाव का इतिहास | History of elections in India
आज़ाद भारत का पहला आम चुनाव 25 अक्टूबर 1951 को हुआ था। जनसंख्या की दृष्टि से यह दुनिया का सबसे बड़ा चुनाव था, जिसमें करीब 53 राजनीतिक पार्टियों ने भाग लिया था और 489 सीटों पर चुनाव लड़ा गया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने इस चुनाव में 364 सीटों पर जीत हासिल की, जबकि 16 सीटें जीतने वाली भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी मुख्य विपक्षी पार्टी बनी।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस आज़ाद भारत की पहली पार्टी थी जिसने पहला आम चुनाव जीता। पंडित जवाहरलाल नेहरू आज़ाद भारत के पहले प्रधानमंत्री बने। इस ऐतिहासिक चुनाव को सफलतापूर्वक संपन्न कराने का श्रेय भारत के चुनाव आयोग को जाता है, जो 25 जनवरी 1950 को स्थापित हुआ था, यानी संविधान लागू होने से ठीक एक दिन पहले।
सुकुमार सेन भारत के पहले मुख्य चुनाव आयुक्त बने थे।
भारत में मतदान प्रक्रिया किस तरह होती है? | Voting Process in India
भारत के लोकतंत्र को स्थायी रूप से बनाए रखने के लिए एक स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव अत्यंत आवश्यक है। लेकिन भारत की विशाल जनसंख्या के कारण इस चुनाव प्रक्रिया को सफलतापूर्वक संपन्न कराना भारत के मुख्य चुनाव आयोग के लिए एक चुनौतीपूर्ण कार्य होता है।
1. मतदाता पंजीकरण
चुनाव के दौरान सबसे पहला कदम होता है मतदाता पंजीकरण। इसमें भारत का प्रत्येक नागरिक, जिसकी आयु 18 वर्ष या उससे अधिक है, मतदाता सूची में अपना नाम दर्ज करवा सकता है। इसके पश्चात वह मतदाता पहचान पत्र (Voter ID Card) के लिए आवेदन कर सकता है।
2. चुनाव की घोषणा
भारतीय चुनाव आयोग चुनाव की तिथि तय करता है, जिसमें यह सुनिश्चित किया जाता है कि चुनाव कब होंगे, मतगणना कब होगी और परिणाम कब घोषित किए जाएंगे। चुनाव की अधिसूचना जारी होने के बाद सभी राजनीतिक पार्टियाँ अपने उम्मीदवारों का नामांकन करती हैं।
3. चुनाव प्रचार और नामांकन
किसी भी उम्मीदवार के लिए चुनाव में भाग लेने हेतु नामांकन पत्र भरना अनिवार्य है। चुनाव आयोग उम्मीदवारों की पात्रता की जांच करता है। चुनाव के दौरान राजनीतिक दल अपने प्रचार-प्रसार का कार्य शुरू करते हैं। मतदान से 48 घंटे पहले प्रचार समाप्त करना अनिवार्य है। यदि कोई पार्टी इस नियम का उल्लंघन करती है, तो इसे आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन माना जाएगा।
4. मतदान प्रक्रिया
चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित तिथि पर मतदाता ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) के माध्यम से बिना किसी डर या दबाव के अपनी इच्छा से मतदान करते हैं। मतदान के समय मतदाता के पास मतदाता पहचान पत्र होना आवश्यक है। यदि मतदाता के पास वोटर आईडी कार्ड नहीं है, तो वह आधार कार्ड, पैन कार्ड या अन्य फोटो पहचान दस्तावेज प्रस्तुत कर सकता है।
5. मतगणना और परिणाम
चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित तिथि पर मतगणना की जाती है। जिस पार्टी या उम्मीदवार को सबसे अधिक वोट मिलते हैं, उसे विजेता घोषित किया जाता है।
पूरी चुनावी प्रक्रिया के दौरान, यदि लोकसभा चुनाव हो रहे हैं, तो पूरे देश में या यदि किसी राज्य के विधानसभा चुनाव हो रहे हैं, तो उस पूरे राज्य में आदर्श आचार संहिता (Model Code of Conduct) लागू की जाती है। आदर्श आचार संहिता चुनाव आयोग द्वारा लागू की जाती है ताकि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित किए जा सकें। आचार संहिता में दिए गए नियमों का पालन प्रत्येक व्यक्ति, राजनीतिक दल और प्रत्याशी के लिए अनिवार्य होता है। यह नियम हर राजनीतिक दल के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं। यदि कोई दल या प्रत्याशी इसका उल्लंघन करता है, तो उसकी सदस्यता या उम्मीदवार की मान्यता रद्द की जा सकती है।
वोटर्स का अधिकार | Voter’s Rights
भारतीय संविधान प्रत्येक नागरिक को मतदान का अधिकार देता है, जो उसका संवैधानिक अधिकार है। अनुच्छेद 326 के अनुसार, लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव वयस्क मताधिकार के आधार पर होंगे। भारत में मतदाताओं के लिए निम्नलिखित अधिकार उपलब्ध हैं:
वोट देने का अधिकार
भारतीय नागरिक जिसकी आयु 18 वर्ष या उससे अधिक है और जिसका नाम मतदाता सूची में दर्ज है, वह लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनावों में मतदान कर सकता है।
गोपनीय मतदान का अधिकार
हर मतदाता को बिना किसी डर या दबाव के स्वतंत्र रूप से मतदान करने का अधिकार है। ईवीएम के माध्यम से गोपनीयता सुनिश्चित की जाती है, जिससे मतदाता का वोट सार्वजनिक नहीं हो सकता।
पुनर्मतदान की मांग का अधिकार
यदि किसी मतदान केंद्र पर धांधली, हिंसा या आपराधिक गतिविधि होती है, तो मतदाता पुनर्मतदान की मांग कर सकता है। इसके बाद चुनाव आयोग जांच कर पुनर्मतदान का आदेश दे सकता है।
निष्पक्ष मतदान का अधिकार
भारतीय निर्वाचन आयोग का कर्तव्य है कि वह स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करे, जिससे हर मतदाता बिना किसी दबाव के मतदान कर सके।
मतदाता सूची में नाम दर्ज कराने का अधिकार
प्रत्येक भारतीय नागरिक जिसकी आयु 18 वर्ष या उससे अधिक है, उसे मतदाता सूची में अपना नाम दर्ज कराने का अधिकार है।
शिकायत दर्ज करने का अधिकार
यदि किसी मतदाता को लगता है कि चुनाव निष्पक्ष नहीं हो रहे हैं, तो वह अपनी शिकायत चुनाव आयोग के समक्ष दर्ज करा सकता है।
उम्मीदवार को चुनने का अधिकार
प्रत्येक मतदाता को अधिकार है कि वह अपने पसंदीदा प्रत्याशी को वोट दे। यदि किसी प्रत्याशी को नहीं चुनना चाहे, तो NOTA (None of the Above) बटन दबा सकता है।
पसंदीदा उम्मीदवार के लिए प्रचार करने का अधिकार
प्रत्येक मतदाता अपने पसंदीदा उम्मीदवार के लिए प्रचार कर सकता है, लेकिन यह कार्य निर्वाचन आयोग की आचार संहिता का पालन करते हुए करना अनिवार्य है।
चुनाव में स्वतंत्र भागीदारी का अधिकार
किसी भी मतदाता को धर्म, भाषा, लिंग, जाति आदि के आधार पर मतदान से रोका नहीं जा सकता। यह कानूनी अपराध है, और मतदाता को बिना किसी डर या दबाव के स्वतंत्र मतदान का अधिकार है।
प्रत्याशी के बारे में जानकारी पाने का अधिकार
कोई भी प्रत्याशी चुनाव में भाग लेने के लिए अपनी शैक्षिक योग्यता, आपराधिक मामलों, संपत्ति आदि का विवरण चुनाव आयोग को देता है, जो सार्वजनिक रूप से उपलब्ध होता है।
मतदाताओं की भूमिका | Role of voters
भारत के लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। बिना निष्पक्ष चुनाव के कोई भी देश पूरी तरह से अव्यवस्थित हो सकता है। चुनाव में मतदाता सबसे महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। राजनीतिक पार्टियाँ अपने-अपने तरीकों से मतदाताओं का समर्थन प्राप्त करने की होड़ में लगी रहती हैं।
कोई मुफ्त योजनाओं का वादा करता है, तो कोई पैसे, शराब या अन्य चीजों का लालच देकर मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास करता है। हर पार्टी यह भली-भाँति जानती है कि मतदाता उनके लिए कितने आवश्यक हैं। इसलिए प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह नेताओं के दिए गए लालच में न आए, बल्कि उनके द्वारा किए गए कार्यों का मूल्यांकन करे और इस आधार पर यह सुनिश्चित करे कि उनके लिए कौन सा प्रत्याशी सबसे उपयुक्त है।
जनता को हमेशा ऐसा प्रत्याशी चुनना चाहिए जो उनकी समस्याओं का समाधान कर सके और जाति, धर्म, लिंग, भाषा आदि के आधार पर किसी प्रकार का भेदभाव न करे।
भारत मे चुनाव मे आने वाली चुनौतियाँ एवं उनके उपाए | Challenges and their solutions
किसी देश में सुनियोजित ढंग से आयोजित किए गए चुनाव का मतलब यह नहीं होता की वह एक महान है। एक देश लोकतंत्र तब कहलाता है जब वह जनता का शासन हो, जनता द्वारा चुनी गयी सरकार का शासन हो, जो की बिना स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाम के संभव नहीं है। भारत जैसे बड़े लोकतंत्र मे चुनाव मे कई चुनौतियाँ उत्पन्न होती है, जिनके कारण चुनाव मे समय की बरबादी होती है साथ ही साथ संसाधनो का भी अच्छा खासा अभाव हो जाता है।
निम्न कारणो से भारत मे चुनाव प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न होती हैं:-
- धन का प्रयोग करके मतदाताओं को लोभ देना, जैसे शराब, रुपयों का वितरण या अन्य सहायता प्रदान करना।
- उम्मीदवारों द्वारा बाहुबल का प्रयोग कर लोगों को डराना, धमकाना या हिंसात्मक गतिविधियाँ करना।
- विशेष जाति या धर्म के लोगों को एकत्र कर ध्रुवीकरण पैदा करना।
- फर्जी वोटिंग करना और बूथ कैप्चरिंग जैसी आपराधिक गतिविधियों को अंजाम देना।
- प्रिंट मीडिया और सोशल मीडिया का दुरुपयोग।
- चुनाव में दिन-प्रतिदिन मतदान प्रतिशत का घटते जाना।
- आपराधिक पृष्ठभूमि से आने वाले उम्मीदवारों द्वारा बाहुबल का गलत प्रयोग।
- चुनाव आयोग द्वारा तय की गई खर्च सीमा का जानबूझकर उल्लंघन करना।
- शासन और प्रशासनिक अधिकारियों एवं व्यवस्थाओं का दुरुपयोग करना।
कुछ उपाए:-
- चुनाव आयोग और सरकार द्वारा मतदाता जागरूकता अभियान चलाया जाना चाहिए, ताकि लोगों में चुनाव के प्रति जागरूकता उत्पन्न हो और वे बिना किसी लालच, डर या दबाव के स्वतंत्र रूप से अपने प्रत्याशी का चयन कर सकें।
- चुनाव के दौरान राजनीतिक पार्टियों द्वारा किए जाने वाले खर्च की सीमा निर्धारित की जानी चाहिए, और इन खर्चों का ब्योरा रखने के लिए एक स्वतंत्र संस्थान का गठन किया जाना चाहिए।
- अपराधियों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्यवाही होनी चाहिए, ताकि मतदाता सुरक्षित महसूस कर सकें।
- प्रिंट मीडिया और सोशल मीडिया पर निगरानी रखना तथा गलत, झूठी और हिंसा फैलाने वाली खबरों पर रोक लगाना आवश्यक है।
- मतदाता सूची को सही तरीके से जांच कर जारी किया जाए, ताकि बोगस वोटिंग को रोका जा सके।
- आपराधिक पृष्ठभूमि से आने वाले उम्मीदवारों के लिए कड़े नियम लागू किए जाना अत्यंत आवश्यक है।
महिला मतदातों का योगदान | Contribution of women voters
भारत में महिला मतदाताओं का वोट प्रतिशत हमेशा कम रहा है, लेकिन 2024 के आम चुनाव में यह प्रतिशत बढ़ा है। 2019 में महिलाओं का वोटिंग अनुपात 928 महिलाएँ प्रति 1000 पुरुष था, जो 2024 में बढ़कर 948 प्रति 1000 हो गया। 36 में से 29 राज्यों में महिलाओं ने पुरुषों से अधिक मतदान किया है।
स्थानीय निकाय चुनावों में महिलाओं को राजनीतिक आरक्षण दिए जाने से उनका चुनावों के प्रति झुकाव बढ़ा है और वे मतदान के महत्व को बेहतर तरीके से समझने लगी हैं। 2029 तक लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33% आरक्षित सीटों का प्रावधान सुचारु रूप से लागू हो जाएगा।