पत्नी अब ससुराल वालों पर झूठे केस नहीं कर सकती | Wife can no longer file false cases against her in-laws

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हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है, जिसने ससुराल वालों और पतियों पर झूठे मामलों के दायर होने पर रोक लगाने की पहल की है। यह फैसला समाज में घरेलू विवादों के बढ़ते मामलों पर लगाम लगाने और कानून का दुरुपयोग रोकने के लिए बेहद अहम है। आइए विस्तार से समझते हैं कि यह फैसला क्या है और इसका समाज पर क्या प्रभाव पड़ेगा।

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि केवल छोटी-मोटी घरेलू तकरार को आधार बनाकर FIR दर्ज नहीं की जा सकती। पुलिस को पहले मामले की तह तक जांच करनी होगी। पर्याप्त सबूत न होने पर FIR दर्ज नहीं होगी। हाई कोर्ट को यह अधिकार दिया गया है कि वह झूठे मामलों को खारिज कर सके। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ऐसे मामलों में तुरंत फैसला लेकर समय की बचत होनी चाहिए।

पत्नी झूठे केस क्यों करती है?

झूठे मामलों के पीछे कई कारण हो सकते हैं, जैसे अगर पति पत्नी की बात नहीं मानता या ससुराल वाले किसी बात पर सहमत नहीं होते, तो बदले की भावना से झूठे केस किए जाते हैं। कई बार रिश्तेदार या मित्र, महिलाओं को झूठे मामलों की ओर उकसाते हैं। अगर महिला का रिश्ता किसी और के साथ हो, तो वह अपने पति से छुटकारा पाने के लिए झूठे आरोप लगाती है। और साथ-साथ यह देखा गया है कि जब भी पत्नी अपनी पत्नी के खिलाफ तलाक का मुकद्दमा करता है तब पत्नी अपने पक्ष को मजबूर करने के लिए पति एवं पति के अन्य परिवार जनों के खिलाफ झूठे केस दायर करती है, ज्यादातर यह मुकदमे 498A यानी दहेज से जुड़े होते है लेकिन कई बार पत्नी मानसिक प्रतारणा का भी आरोप लगती है।

झूठे मामलों का समाज पर प्रभाव

झूठे मामलों के कारण पति और ससुराल वालों को मानसिक प्रताड़ना झेलनी पड़ती है। झूठे केस लड़ने में वकील और कोर्ट की फीस के रूप में आर्थिक नुकसान होता है और ऐसे मामलो मे 4-5 साल लग जाते है जिससे मानसिक तौर पर आपको परेशानी झेलनी पड़ सकती है। कई बार इन मामलों के कारण पीड़ित व्यक्ति की इज्जत और प्रतिष्ठा खत्म हो जाती है।आजकल देखा जा रहा है कि इन मामालों में जब कोई युवा व्यक्ति इन मामलों को सुनता है या इंटरनेट के माध्यम से देखता है तो उन्हें शादी के एक तरह का डर उत्पन्न हो रहा है। युवा पीढ़ी शादी के प्रति कम उत्साहित हो रही है और शादी करने से बिलकुल डर रही है। हाल ही मे अलाहबाद उच्च न्यायालय ने कहा है की पत्नी द्वारा पति एवं पति के परिवार वालों पर झूठा आरोप लगाना क्रूरता के समान है। लेकिन सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ता है बच्चों पर। देखा गया है कि जब बच्चों की उम्र छोटी होती है जिसमें बच्चे अपनी बालवस्था मे होते है एवं अपनी खेलने कूदने की उम्र मे होते, ओर उन्हे अपनी शिक्षा ग्रहण करनी होती है, उस समय जब घर वालों के बीच इस तरह का महौल होता है तब उनके मानसिक संतुलन पर प्रभाव पड़ता है,एवं उनके शैक्षणिक जीवन में भी इनका प्रभाव पड़ता है। जब उन्हे मां-बाप का प्यार मिलना चाहिए उस समय वह इन मुकदमों को देखते तब उनके मन में डर पैदा होता है एवं पूर्ण रूप से बचपन में किए जाने विकार वाले विकास से वंचित रह जाते हैं। बात जब तलाक पर हो जाती है, या जब दोनों माँ बाप के अलग होने पर आती है, तो उनके साथ जब बच्चे अलग हो जाते हैं तो उन्हें माँ बाप का प्यार नहीं मिलता जिसे वह कई चीजों से वंचित रह जाते है। इन परिस्थितियो से उभरे बच्चे शादी करने से डरने लग जाते हे एवं समाज को भी उसी नज़र से देखते हैं

क्या करें अगर आप झूठे केस का शिकार हैं?

घर में (बाथरूम और टॉयलेट को छोड़कर) कैमरे लगाकर सबूत जुटाएं। पड़ोसी गवाह के रूप में झूठे आरोपों को खारिज करने में मदद कर सकते हैं। झूठे आरोपों के खिलाफ कोर्ट में पुख्ता सबूत और सही तथ्यों के साथ जाएं। सभी प्रकार के लिखित और रिकॉर्डेड सबूत रखें, जो आपकी बेगुनाही साबित कर सकें। साथ ही साथ यह भी सुनिश्चित करे की आप पत्नी के खिलाफ कोई हाथापाई न करे ना ही किसी तरह की चिल्ला- चौट करे।

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला क्यों है महत्वपूर्ण?

यह फैसला उन पतियों और परिवारों के लिए राहत लेकर आया है, जो झूठे मामलों के कारण परेशान होते हैं। साथ ही, यह सुनिश्चित करता है कि वास्तविक पीड़ितों को न्याय मिले और कानून का दुरुपयोग न हो।

सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय समाज में संतुलन और न्याय स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह फैसला न केवल झूठे आरोपों पर रोक लगाएगा, बल्कि कानून के सही उपयोग को भी बढ़ावा देगा।

क्या है पुरुष के परिवार वालों के पास मौजूद रास्ते?

अगर कोई महिला अपने पति या पति के परिवार वालों के खिलाफ घरेलू हिंसा या प्रतारणा का केस दर्ज करती है तो पति की माँ एवं बहन के पास भी एक रास्ता मौजूद होता है की वह भी अपनी बहू के खिलाफ मानसिक प्रतारणा का मुकदमा दायर कर सकते है, और अपनी बहू को जैल भी करवा सकती है, एवं अपनी बहू के घरवालो के खिलाफ भी मुकदमा दर्ज करवा सकती है। साथ ही साथ आपको अपने लिए न्यायिक रास्ते सुनिश्चित करना चाहिए। आपके द्वारा दर्ज मुकदमे मे आपकी फ़ाइल पक्की हो उसमें मौजुद सबूत पक्के हो साथ ही साथ आपका वकील बहुत बढ़िया होना चाहिए जो इन मामलों में पहले ही केस लड़ चूका हो। आपको अपना पक्ष मज़बूत करना चाहिए ताकि कोर्ट का आपकी और आपके पक्ष में न्याय देने की राह आसान हो जाए। अगर आपको यह मुकदमा जितना है तो आपको एक बढ़िया वकील ढूंढ़ना होगा अगर आप खुद वकालत जानते हैं फिर भी आप याह सुनिशचित करें कि आप एक वकील रख ले, इससे आपको यह फायदा होगा कि आपका वकील सबूतों को जुटाने एवं न्यायालय पे पैश करने मे सक्षम होगा क्यूकी आपको यह सब करने मे समय की कमी रहेगी एवं आपका मुकदमा लंबा चलता जाएगा।

जब भी आप इन तरह की परिस्थितियों से गुजरे तो यह ध्यान रखे की आप उस महिला के खिलाफ कोई मारपीट या अन्य हिंसात्मक उपाए न अपनाए एवं कानूनी रूप से ही सुलझाइए अन्यथा आपकी परिस्थिति और खराब हो सकती है। उससे भी काही बेहतर है की आप आपस मे ही सलाह मशवरा कर ले ताकि इस तरह की परिस्थितियो का सामना ही न करना पड़े एवं आपका वैवाहिक जीवन सुखी रहे।

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